मेरी कविता

बाबा
लौट आना चाहता हूँ मैं
एक दिन
पगडंडियों के रास्ते तुम्हारे खेतों तक...
खेलना चाहता हूँ
लुका-छिप्पी
तुम्हारे खलिहान में...
माँ मेरी
लौट आना चाहता हूँ मैं
एक दिन
रोटी की गन्ध के सहारे
तुम्हारे चूल्हे तक...
धुँयें के साथ साथ
उठना चाहता हूँ
आकाश के विस्तार तक...
मेरे दोस्त
लौट आना चाहता हूँ मैं
एक दिन
कांच की गोलियों के साथ तुम्हारी गलियों में...
सींक चक्के के सहारे
नापना चाहता हूँ
पूरी धरती की गोलाई ....


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