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भोजपूरी फ़िल्मों के लिये नई ज़मीन की तलाश करती “ सईंया डराईवर बीवी खलासी”

बहुत दिनों बाद एक भोजपूरी फ़िल्म देखने का मौका मिला... आम तौर पर भोजपूरी फ़िल्में मैं नहीं देखता ... उसकी सबसे बडी वजह है.... भोजपूरी फ़िल्मों का मेरी उम्मीद पर खरा नहीं उतर पाना.... जब भोजपूरी फ़िल्मों की फ़िर से हवा चली थी ...तो मुझे लगा था कि भोजपूरी फ़िल्में दर्शकों की उस भूख को मिटा पाने मे सफ़ल होगी ...जिसके कारण दर्शक उसके करीब आये.... भोजपूरी के करीब दर्शकों के आने का सबसे बड़ा कारण मेरे अनुसार ... हिन्दी फ़िल्मों से हिन्दुस्तान का गायब होना था... हिन्दी फ़िल्में हमारे देश के रियल इमोशन से दूर चली गई थी... और एक ऐसी दुनिया का निर्माण करने लगी थी...जहां हिन्दुस्तान का काम आदमी अपने आप को फ़िट नहीं कर पा रहा था...! मगर भोजपूरी फ़िल्मों ने उन दर्शकों के साथ क्या किया... उम्मीद से देख रहे उन दर्शकों के सामने हिन्दी फ़िल्मों की घटिया संस्करण प्रस्तुत किये.... जिसकी न मेकिंग अच्छी थी ...न एक्टिंग...और ना ही कहानी... यहां आकर भी दर्शक ठगा सा महसूस करने लगा...खैर...! मगर ये फ़िल्म “सईंया ड्रायवर बीबी खलासी” उन फ़िल्मों से हट कर है.... किसी फ़िल्म को देखने लायक अगर कोई चीज