संदेश

नवंबर, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

द ग्रेट डिक्टेटर की आखिरी स्पीच

चार्ली चैप्लिन मुझे मांफ़ कीजियेगा...किन्तु मैं कोई सम्राट नहीं बनना चाहता... यह मेरा काम नहीं... मैं किसी पर शासन करना या किसी को जीतना नहीं चाहता... मैं हर किसी की सहायता करना चाहता हूं... हर संभव- यहूदी... जेंटाइल... काले... सफ़ेद ...सबकी...! हम सब एक –दूसरे की सहायता करना चाहते हैं... आदमी ऐसा ही होता है... हम एक –दूसरे की खुशियों के सहारे जीवन चाहते हैं, दुखों के नहीं... हम आपस में नफ़रत या अपमान नहीं चाहते... इस दुनिया में हर किसी के लिये जगह है... यह प्यारी पृथ्वी पर्याप्त संपन्न है और हर किसी को दे सकती है... ! ज़िन्दगी का रास्ता आज़ाद और खूबसूरत हो सकता है... पर हम वो रास्ता भटक गये हैं... लोभ ने मनुष्य की आत्मा को विषैला कर दिया है... दुनिया को नफ़रत की बाड़ से घेर दिया है... हमें तेज़ कदमों से पीड़ा और खून-खराबे के बीच झटक दिया गया है... हमने गति का विकास कर लिया है... लेकिन खुद को बन्द कर लिया है... ! इफ़रात पैदा करने वाली मशीनों ने हमें अनंत इच्छाओं के समन्दर में तिरा दिया है... हमारे ज्ञान ने हमें सनकी, आत्महन्ता बना दिया है...हमारी चतुराई ने हमें कठोर और बेरहम..