संदेश

जुलाई, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मेरी कविता

औरत जुल्म सहती है चुप रहती है तो सुंदर है... जब बोल पड़ती है बगावत करती है तो बेगैरत है क्योंकि वो एक औरत है...!

मेरी कविता

तुम और मैं

मैं अपनी खिड़की से झाँक रहा था... बाहर अपने बरामदे में खड़ी थी तू.... न चाँद थी और नहीं कोई परी थी तू... सीधी-सादी साधारण सी एक लड़की थी तू.... मन में असंख्य तरंगें छुपाये जैसे मैं तुम्हें देख रहा था... अनगिनत लहरों में डूबती-उतराती वैसे ही खड़ी थी तू... मैं तुम्हे देर तक देखता रहा इस एहसास की लाली तुम्हारे गालों पर साफ देखी जा सकती थी... मेरे देखे जाने तक तू वैसे ही खाड़ी रही... मैं चाहता था...तुम्हारे करीब आना तुम्हे छूना खूब सारी बातें करना मगर एक अनजाना डर रोक रहा था मुझे भी तुझे भी...

शाम के गीत

आग जल रही है तबा गर्म है रोटी फूल रही है माँ रोटी बेल रही है उसकी चूड़ियाँ बज रही हैं... आग रोटी माँ और चूड़ियाँ मिलकर गा रहे हैं शाम के गीत..... कुम्हार ने चाक पर मिट्टी चढा रखी है उसके हाथ मिट्टी पर लगते ही घड़ा आकार लेने लगता है ... स्कूल से लौटते बच्चों ने उसे घेर रखा है ... घूमते चाक कुम्हार के सधे हाथ और बच्चों की उत्सुकता ने पकड़ रखी है एक लय कुम्हार चाक और बच्चे मिलकर गा रहे हैं शाम के गीत......

तीन बहनें

वे खिल-खिल, खिल-खिल हंसती हैं हंसी उनकी हवा में घुल-घुल,घुल-घुल जाती है वे हंसती हैं और बस हंसती चली जाती हैं एक निश्चाल, नि:स्वार्थ और उनमुक्त हंसी वे हंसती हैं साथ –साथ उनके हंसता है पूरा आलम उनकी हंसी चिड़ियों तक पहुंचती है... और वे गाने लगती हैं ... फूल सुनते हैं और खिलने लगते हैं .. उनकी हंसी नदि को छूती है और तरंगें उठने लगती हैं पास वाले बगीचे में उसकी हंसी जाती है और अमरूद में मीठास घोल आती है.... सबेरे का सूरज रास्ते में उनकी हंसी सुनता है और उसके गालों पर लाली छा जाती है... वे नहीं जानतीं हर रात चान्द उनकी हंसी सुनने ही उनके छत पर आता है और अनगिनत तारे दूर से ही टीम-टीम,टीम-टीम करते हैं ...