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काहे को ब्याहे बिदेस काहे को ब्याहे बिदेस, अरे, लखिय बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेस भैया को दियो बाबुल महले दो-महले हमको दियो परदेसअरे, लखिय बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेस हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ जित हाँके हँक जैहेंअरे, लखिय बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेसहम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँघर-घर माँगे हैं जैहेंअरे, लखिय बाबुल मोरेकाहे को ब्याहे बिदेसकोठे तले से पलकिया जो निकलीबीरन में छाए पछाड़अरे, लखिय बाबुल मोरेकाहे को ब्याहे बिदेसहम तो हैं बाबुल तोरे पिंजरे की चिड़ियाँभोर भये उड़ जैहेंअरे, लखिय बाबुल मोरेकाहे को ब्याहे बिदेसतारों भरी मैनें गुड़िया जो छोडी़छूटा सहेली का साथअरे, लखिय बाबुल मोरेकाहे को ब्याहे बिदेसडोली का पर्दा उठा के जो देखाआया पिया का देसअरे, लखिय बाबुल मोरेकाहे को ब्याहे बिदेसअरे, लखिय बाबुल मोरेकाहे को ब्याहे बिदेसअरे, लखिय बाबुल मोरे -अमिर खुसरो हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चांद अपनी रात की छत पर कितना तनहा होगा चांद जिन आँखों में काजल बनकर तैरी काली रातउन आँखों में आँसू का इक, कतरा होगा चांद रात ने ऐसा पेंच लगाया, टूटी हाथ से डो
ठहरा हुआ ये मौसम बदल जाता गर तुम आते , इस ठूठ पर कोंपल आता गर तुम आते । जब से गए हो जीवन ढहर गया है रातें नहीं गुजरतीं दिन भी पसर गया है , चाँद को मिलती गति सूरज भी दौड़ जाता गर तुम आते इस ठूंठ पर कोंपल आता गर तुम आते .....!

गोदान, मैला-आंचल से वंचित पीढ़ी

गोदान, मैला-आंचल से वंचित पीढ़ी  देश में अंग्रेज़ी को लेकर बहुत पहले से ललक रही है...! मगर उदारीकरण के बाद ये ललक लालच में बदल गई है...! जिसके परिणाम स्वरूप हर शहर,कस्बा यहां तक कि गांव में अंग्रेज़ी स्कूल कुकुरमुत्ते की तरह उग आये हैं...! जिसे देखो अंग्रेज़ी स्कूल में अपने बच्चे को पढ़ाने के लिये मरा जा रहा है...! किस स्कूल की पढ़ाई कैसी है, व्यवस्था कैसी है..ये कोई नहीं देखता बस माध्यम अंग्रेज़ी होना चाहिये...! आखिर अंग्रेज़ी के पीछे भागने का कारण क्या है...? ज़ाहिर है अंग्रेज़ी का अंतर्राष्ट्रीय भाषा होना...! लोगों को ऐसा लगता है जैसे सारी समस्याओं का समाधान अंग्रेज़ी भाषा कर देगी...! लोगों को ये समझ में क्यों नहीं आता कि भाषा अपने आप में कुछ नहीं होती, उसके पीछे का भाव ही सब कुछ होता है...! जो किसी भी भाषा में एक समान होता है...! किसी भी समाज की भाषा उस समाज के इतिहास और संस्कृति की वाहक होती है...! एक भाषा के मरने का मतलब उस समाज के इतिहास और संस्कृति का अंत...! अगर कोई इंसान हिन्दी नहीं जानता है इसका मतलब ये हुआ कि उसके भीतर से हिन्दी समाज के इतिहास और संस्कृति का अंत...! पहले भी लोग

युद्ध नहीं, प्रेम की तलाश

युद्ध नहीं, प्रेम की तलाश कला और जीवन का साथ पतंग और डोर जैसा है...! जब तक पतंग डोर से बंधी रहती है ऊपर उठती जाती है , जैसे ही डोर का साथ छुटता है, पतंग नीचे गिरने लगती है ! फ़िल्म विधा पर भी यही नियम लागू होता है...! टेक्नालाजी ने आज पूरी दुनिया के सिनेमा को हमारे बेड रूम तक पहुंचा दिया है...घर बैठे हम भिन्न-भिन्न देशों का सिनेमा देखते और उसकी आपस में तुलना भी करते हैं... पिछले दिनों मुझे ईरान की फ़िल्में देखने का मौका मिला...मैंने ईरानी फ़िल्मकार माजिद मजिदी की सारी फ़िल्में देख डालीं- चिल्ड्रेन्स आफ़ हिवेन,सांग आफ़ स्पैरो, कलर्स आफ़ पाराडाईज,द विलो ट्री , बरान और द फ़ादर...! माजिद मजिदी की फ़िल्में एक अलग ही दुनिया से परिचय कराती हैं . एक ऐसी दुनिया जो मानवीय संवेदना से भरपूर है , जो हमारी नीजी जरूरतों और उसके पाने के संघर्ष से बनी है ...! दूसरी दुनिया इसलिये ... क्योंकि अब तक जो सिनेमा मेरी नजरों से गुजरा है , उनमें हिन्दुस्तानी सिनेमा और हालीवुड का सिनेमा प्रमुख है .. . अगर कुछ फ़िल्मों को छोड़ दें तो हिन्दी और हालीवुड का सिनेमा सुन्