मेरी कविता

वो शामें कहाँ गईं
जो मेरे चेहरे पर
सपने की तरह कभी खिलती थीं...
वो सुबहें
जो हमारी नसों में ऊर्जा बनकर दौड़ती थीं
कहाँ गईं...
और वो आसमान
जहाँ सात रंगों वाला इन्द्रधनुष खिलता था..
उसे किसने छीना...
वो रातें जहाँ
रिश्तों की गर्माहट थी
नींद जहाँ चुपके से बेआवाज़
पलकों पर बैठ जाती थी
कहाँ खो गई वो.....
और वो नन्हा सूरज
जिसकी नन्हीं किरणें
हर रोज़ मेरे बिस्तर पर आकर
मुझे जगाती थीं
अब क्यों नहीं आती....

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