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गर तुम आते

ठहर हुआ ये मौसम बदल जाता गर तुम आते॥ इस ठूंठ पर कोंपल आता गर तुम आते॥ जब से गए तुम जीवन ठहर गया है रातें नहीं गुजरतीं दिन भी पसर गया है । चाँद को मिलती गति सूरज भी दौड़ जाता गर तुम आते । इस ठूंठ पर कोंपल आता गर तुम आते...
ठहर हुआ ये मौसम बदल जाता गर तुम आते ॥ इस ठूंठ पर कोंपल आता गर तुम आते ॥ जब से गए तुम जीवन tha
तेरी यादों की बारिश होती ही रहती है हर पहर ॥ रात को बिस्तर पे कुछ और ही घनी हो जाती है इतनी की उसके शोर में सबकुछ डूबता सा महसूस होता है ॥ यूँ तो बूंदा -बूंदी जारी ही रहती है दिन भर पर जब कभी अकेला होता हूँ बादल और भी घने हो जाते हैं बहुत कोशिश करता हूँ बचने की , भागता हूँ तेज़-तेज़ मगर बूंदे भिंगो ही देती हैं... और देखते -देखते मैं पानी-पानी हो जाता हूँ ।
यहीं तो था कभी मैं इन्हीं खेतों पगडंडियों और बांधों के बीच.. नीले अम्बर और हरी धारा के बीच .. जहाँ सूरज निकलता था और शाम होती थी... बाबा का स्नेह और माँ की ममता होती थी.....

जीवन क्या है

जीवन क्या है ? ये सवाल अक्सर मेरे मन में उठता रहता है ..आज भी एक बार सामने खड़ा हो गया है !...जिसका उत्तर मुझे कार्ल मार्क्स के एक वाक्य में मिल गया है ...मार्क्स ने लिखा है - जीवन एक संघर्ष है !..ये वाक्य बहुत पहले ही मैंने पढ़ा है ..मगर मतलब बहुत दिनों बाद समझ पाया हूँ..सच ही तोह कहा मार्क्स ने ...जीवन संघर्ष ही तो है -जीवन और मृत्यु के बीच का संघर्ष , सच और झूठ का संघर्ष , ज्ञान और अज्ञानता का संघर्ष , विज्ञान और अन्धविश्वास का संघर्ष ,प्यार और घृणा का संघर्ष , अमीरी और गरीबी का संघर्ष ..सफलता और असफलता का संघर्ष ..........