कवि आलोकधन्वा को पढते हुये

आलोकधन्वा की कविताओं की बहुत सारी विशेषताएं हैं...उनमें से एक है...पुरानेपन का अहसास... उनकी कवितायें एक पुराने अहसास से भींगी हुई हैं... अतीत की एक अजीब सी खुश्बू से सराबोर... वो पुराने को खींच कर इस तरह सामने रखते हैं...कि वो नयेपन का एह्सास दे जाता है... ऐसा नया जिसे पाने की ललक मन में घर कर जाती है... वो अतीत में जो बेहतर था... जिससे हमारा समय ,हमारा समाज सुन्दर और भरापूरा दिखता था... और जो इस शोर--गुल में कहीं पीछे छूट गया है ...उसे सामने लाकर रख देते हैं... और मन में एक ऐसी टीस भर देते हैं... कि मन बेचैन हो जाता है उसे पाने के लिये... ! पुराने से हमारी पहचान बनती है... उसी से हमारी कीमत आंकी जाती है... नयेपन की होड़ में अक्सर हम इस चीज़ को भूल जाते हैं... ! हर समाज का अपना एक रंग होता है... एक स्वाद ..एक मुल्य होता है... वही उसकी खासियत होती है... ग्लोबल होती आज कि इस दुनिया में हमारे ये रंग...ये स्वाद ,ये मुल्य खोते जा रहे हैं...इस बात की चिन्ता उनकी कविताओं में देखी जा सकती है... जीवन पैसे से नहीं बनता और नहीं ज्यादा उपभोग से ... जीवन बनता है...विश्वास से, परस्पर सहयोग से , नैतिक मूल्यों से , लेकिन बाजार ने इन सब को खत्म कर दिया है...जहां हर चीज़ की कीमत लगने लगे...वहां ये सारी चीजें जीवित रह भी कैसे सकती हैं... ? मुनाफ़ाखोरी ने पूरी दुनिया को एक चारागाह में बदल दिया है ...और लोग ज्यादा से ज्यादा चरने में लगे हैं...और उसके लिये बड़े से बड़े नरसंहार करने से भी बाज नहीं रहे... !

Ravi Shankar 

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