तेरी यादों की बारिश होती ही रहती है
हर पहर ॥
रात को बिस्तर पे
कुछ और ही घनी हो जाती है
इतनी की उसके शोर में
सबकुछ डूबता सा महसूस होता है ॥
यूँ तो बूंदा -बूंदी जारी ही रहती है
दिन भर
पर जब कभी अकेला होता हूँ
बादल और भी घने हो जाते हैं
बहुत कोशिश करता हूँ बचने की ,
भागता हूँ तेज़-तेज़ मगर
बूंदे भिंगो ही देती हैं...
और देखते -देखते मैं पानी-पानी हो जाता हूँ ।

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