कुछ यहाँ कुछ वहां

कुछ यहाँ कुछ वहां
छुट गया हूँ जहाँ तहां
जाने कहाँ कहाँ !
कुछ माँ की गोद में
कुछ बाबा के कन्धों पर ......

कुछ तितलियों के पीछे
कुछ गांव की गलियों के मोड़ पर
कुछ स्कूल के रास्ते में
उस खिड़की पर
जहाँ खड़ी मिलती थी एक लड़की
अपनी दोनों चोटियों में लाल फीते का फूल बनाये
और नज़र मिलते ही
मारे शरम के बन्द कर लेती थी खिड़की
आज भी देख रहा हूँ
उस खिड़की के खुलने की राह....
और वो पतंग
जो पतंगों के झूंड में
सबसे ऊपर उड़ रही है
बहुत ऊपर
विल्कुल चान्द के करीब
चान्द जैसी...
मेरी नज़रें अब भी वही अटकी हैं ....
जो हमारे रास्ते को करती थी
छोटा और आसान
उन पगडंडियों की चिकनी मिट्टी पर
मेरे पैरों के निशान आज भी मिल जायेंगे.....
ओह
ये मौसम
मौसम का बदलना
मौसम के खेल
बसंत
सावन
शरद
सावन के मेघ
वसंत के रंग
शरद की गुनगुनी धूप
ले गये सब ज़रा-ज़रा सा....

टिप्पणियाँ

shama ने कहा…
Ye aur uske ooparwaalee...donohee behad achhee kavitayen. hain" deewaarhee nahee rahee" aur aur sach apnaa kahan, kahan kya, kya choot jaata hai...! Par "maakee godme ya pitake kandhepe" ye alfaaz padhke aankh bhar aayee. .....
Kya ek sujhaw dun? Ye word verification pls nikal daliye!

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